Saturday, October 2, 2010

गांधी- अहिंसा का सजग प्रहरी

२ अक्तूबर पर विशेष
सत्य और अहिंसा - सबसे बड़ा मानवमूल्य
दो दिन पूर्व ही छः दशक से चले आ रहे अयोध्या विवाद का चिर प्रतीक्षित फैसला अदालत द्वारा सुनाया गया. सारे देश में सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे. फैसले को लेकर एक आशंका और भय का सा वातावरण बना हुआ था. चूँकि मामला धर्म से जुड़ा हुआ था, इसलिए बीती घटनाओं को देखकर हर स्तर पर सतर्कता बरतने की कोशिश की गई. बहरहाल इसे लेकर कहीं कोई हिंसक वारदात नहीं हुई और शांति व सौहार्द बना रहा.
कुछ रास्ते कठिन होते हैं. अहिंसा के रूप में गांधीजी ने भी एक कठिन राह चुना था- उनका विरोध भी हुआ. लेकिन वे मोहन दास से गांधी बने तो सिर्फ इस कारण की वे अपने सिद्धांतों पर अंत तक डटे रहे. आजादी की कठिन लड़ाई सत्याग्रह के बूते लड़कर उन्होंने सिद्ध किया की हिंसा से हम वह स्थाई जीत नहीं प्राप्त कर सकते, जो अहिंसा के बलबूते पर कर सकते है.
अहिंसा का सजग प्रहरी 
दरअसल देखा जाए तो गांधीजी का यह फार्मूला मानव जीवन और मानव मूल्यों को संपोषित करते हुए उसे एक ऊंचाई तक ले जाता है. आज इसकी बेहद जरुरत है. दंगे और फसाद आम समाज में कोई नहीं चाहता. कुछ स्वार्थ से प्रेरित लोग ही इसकी बीज बोने का काम करते हैं. वे लोगों को आपस में लड़ाते हैं, खून की होली खेलते है और अपनी स्वार्थ की रोटियां सेंकते हैं.

समाज में प्रेम, शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए अहिंसा ही एकमात्र मार्ग है. इसी में जनकल्याण निहित है.

कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी- लगे रहो मुन्नाभाई.  काफी लोकप्रिय हुई थी. इसने गांधीवाद के धूमिल पड़ते विचारधारा को गांधीगिरी के आधुनिक नारे में बदल दिया. जहाँ यह सन्देश मिलता है की गांधी के सिद्धांतों पर चलकर ही सही मायनो में अपने लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है. गांधीगिरी के ऐसे प्रयासों को आगे बढ़ाने की जरुरत है.

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